Thursday, May 25, 2023

परिषदीय विद्यालयों में बाहरी अवांछनीय तत्वो का प्रवेश ।

 आज बेसिक शिक्षा विभाग खास तौर पर परिषदीय विद्यालयों में बाहरी आवांछनिय तत्वों का हस्तछेप इतना बढ़ गया है की कुशल और प्रशिक्षित अध्यापकों के कार्यशैली पर एक अनपढ़ जिसको सतही ज्ञान नहीं है वो भी पाठ पढ़ाने को और कार्यपद्धति को समझाने के लिए आतुर है ।।जिसमे मुख्य भूमिका गांव के वैसे लोगो की होती है जिनके बच्चे निजी विद्यालयों में पढ़ते हैं वही सरकारी विद्यालय में आकर पढ़ाई में बाधा उत्पन्न करते हैं।।उनसे नहीं होता तो प्रधान जी हैं उनको लगा देते हैं की जाइए देखिए समझाइए मास्टर साहब सही काम नहीं कर रहे अब कौन समझाए की गांव का तो सारा विकास मद प्रधान जी खा गए अब जो बच्चें आ रहे वंचित वर्ग के उनके भी मानसिक विकास को खाने के लिए शिक्षकों से बदसलूकी कर रहे ताकि पढ़ा न सके शिक्षक ।।अच्छा तो इन सबमें हाथ सरकार और उनके नुमाइंदों का भी है कक्षा के हिसाब से शिक्षक देते नहीं और उपलब्धि आकलन लगातार मांगते हैं शिक्षक करे तो क्या करे ।। फिर भी शिक्षक नैतिक मूल्यों और सामाजिक तत्वों से अपने बच्चों को ओत प्रोत करने में लगा रहता है जो निजी विद्यालयों में तो देखने को नहीं मिलता आज भी सरकारी विद्यालय संस्कारों को जीवित रखे है जिनको निजी संस्थानों में कोई जगह नही है ।।। आप ही अपने पास के किसी ऐसे बालक बालिका का नाम बताइए जो सरकारी संस्थान का छात्र हो और अपने अभिभावक से बदसलूकी करता हो जबकि उसके अभिभावक उसकी कोई भी मूलभूत सुविधाओं को नहीं से पाते सही से लेकिन दूसरे तरह निजी संस्थानों के बच्चे अपने सुविधाओं के लिए अपने अभिभावक के इज्जत सम्मान को मटियामेट कर देते हैं । तो ये अंतर है सरकारी संस्थान और निजी संस्थानों में ।।। और भी बहुत कारण है इसके पीछे  हमारे विद्यालय में जो बच्चे पढ़ते हैं उनके अभिभावक तो बिलकुल जागरूक नहीं हैं उनको तो इतना भी नहीं मालूम की उनका बच्चा किस कक्षा में पढ़ता है और ये इसलिए भी है क्योंकि उनको अपने जीवन के पल जीने से फुर्सत ही कहां है की वो अपने बच्चों का भविष्य देख सके मजदूरी करते हैं दिन भर और रात में दारू पीकर आकर बच्चो और परिवार वालो से उलझते हैं बच्चे कापी पेंसिल भी मांगे तो उसके बदले उनको मिलती है डांट ।।।जो मुख्य है पारिवारिक पृष्ठभूमि और पालन पोषण का तरीका वही सही नही परिषदीय बच्चों का और लोग तुलना करते हैं निजी संस्थानों के बच्चो के बुद्धि लब्धि से अच्छा इसमें भी जब मास्टर साहब मेहनत करके बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ देते हैं तो बच्चे का नामांकन निजी संस्थानों में हो जाता है कुछ दिन वहां वह सर्कस के जानवरो के भांति प्रशिक्षित होता है तबतक फीस की मार के कारण फिर आ जाता है परिषदीय विद्यालयो में उस समय उसकी बुद्धि की खिचड़ी बन गई होती है और मास्टर जी फिर शुरू से पढ़ाने लगते हैं ।।पढ़ाई तक तो फिर भी ठीक है मास्टर जी दर्जी कपड़े नापना जूते नापना और एमडीएम खिलाना सब साथ में करते हुए बच्चों के सर्वांगीण विकास में अनवरत रहते है फिर गांव के लोग आते हैं और तल्ख़ टिप्पणी होती है की फ्री का तनख्वाह पा रहे पढ़ाना है नहीं उसके बाद भी सरकारी संस्थान के शिक्षक अपने कर्तव्यों के निर्वहन से कभी मुंह नही मोड़ते ।

आज के समय में तो स्थिति यह है की शिक्षक के निरीक्षण के लिए कोई ऐसा पदाधिकारी नहीं जो नियुक्त न किया गया हो बीडीओ सीडीओ डीएम बीइओ बीएसए सभी शिक्षक को मुक्त रूप से पढ़ाने में सहयोगात्मक रवैया न अपनाकर उनके खिलाफ कार्रवाई के फिराक में हैं लेकिन इन सब के बावजूद एक सरकारी शिक्षक जिसके कोई ऊपरी आमदनी नहीं है अपने बच्चों के हिस्से का पैसा इन बच्चों को अपना बच्चा मानकर इनके लिए खर्च करता है कॉपी पेंसिल उनका जन्मदिन बाल दिवस सब इन बच्चों के साथ मनाता है ऐसे समाज सुधारकों को मेरा कोटि कोटि प्रणाम है ।।।की समाज के अधिकांश लोग के विरोध और हस्तक्षेप के बाद भी वंचित बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ रहा और सफल भी हो रहा सरकारी परिषदीय शिक्षक ।।।सरकार की भी मंशा को बिफल कर आगे बढ़ता जा रहा सरकार तो लगातार निजी विद्यालयों को मान्यता दे रही और देती आई है ताकि परिषदीय विद्यालय टूट जाएं की वेतन न देना पड़े फिर भी कोई तो बात है आज भी मास्टर जी भारी पड़ रहे आधुनिक सर जी के ऊपर और सरकारी परिषदीय विद्यालय किलकारियों से गुजायेमान है और रहेगा भी👏👏 

तुम लाख कर लो कोशिशें हमे हटाने की ।।

शायद तुम भूल रहे हम ही असल सृजनकर्ता हैं इस जमाने की

🌹🌹 मेरा कोटि कोटि प्रणाम 👏👏हर हर महादेव🙌🙌


---                                                 विजय यादव

                                                       (स.अ)

                                                     कुशीनगर